उफ़........ सरकार का मजदूरों के साथ एक क्रूर मजाक

उफ.........सरकार का मजदूरों के साथ ये क्रूर मजाक


श्रीगोपाल गुप्ता


कोरोना वायरस ने लगभग पूरी दुनिया को अपने आगोस में ले लिया है ,इससे कोई अछूता नहीं है! अपनी नासमझी और मद में चूर होने के कारण वर्तमान सरकार की अदूरदर्शिता के कारण भारत भी बुरी तरह से उसकी चपैट में है! मगर जो सबसे बड़ी दिक्कत दुनिया के सामने आ रही है, वो ये है इसकी कोई दवा,बैक्सीन या टीका ईजाद नहीं है! इसलिए भारत में भी नहीं है, पहले सरकार द्वारा बताया गया कि 12 घण्टों में कोरोना वायरस मर जाता है इसलिये गत 22 मार्च को प्रधानमंत्री द्वारा घोषित जनता कर्फ्यू का पूर्ण पालन किया गया फिर बताया कि कोरोना का वायरस 14 दिन में खत्म हो जाता है, इसलिये 21 दिन के लाॅकडाऊन का पूर्ण पालन किया गया! मगर इससे कोई फायदा नहीं हुआ है तो कह रही कि देश के नागरीक कोरोना के साथ जीना सीखें, जैसे कोरोना के साथ जीना कोई सुखद अहसास है! मगर यह सच है कि कोरोना की रोकथाम के लिए सरकार ने पूरी ताकत लगा दी है कि किसी तरह इस पर नियंत्रण लग सके मगर पुरानी कहावत के अनुसार 'ज्यों-ज्यों इलाज किया मर्ज बढ़ता ही गया' देश पर मुफीद बैठ रही है!सरकार अब कोरोना से बढ़ते संक्रमण से पल्ला झाड़ रही है और इसके लिये राज्य सरकारों को कटघरे में खड़ा करते हुये दिखाई दे रही है, ये निक्कमे पन व बैहयाई की पराकाष्ठा है! यदि सरकार के कुतर्कों को मान भी लिया जाये कि कोरोना को रोकना केवल उसके बस की बात नहीं है तो फिर साथ में उसको यह बता देना चाहिए कि उसके द्वारा चलाई जा रही श्रमिक ट्रेनों में भूख-प्यास और गर्मी से दम तोड़ते मजदूर,महिला और बच्चों की मौत को रोकना किस के बस की बात है? मौत देश की सड़कों, रेल पटरी, बसों और ट्रेनों में खुला तांडव कर रही है और मजदूर और उसके परिवार को लेकर चलने वाली ट्रेनें रास्ता भटक रही हैं और चोबीस घण्टे का सफर नौ-नौ दिनों में तय कर रही हैं जबकि सरकार का बशर्म और निक्कमा साबित हो चुका रेल मंत्रालय और उसके कथित जिम्मेदार सफेद हाथी हो चले अधिकारी उल्टे-सीधे बयान देकर अपनी मरी हुई संवेदनाओं से दम तोड़ते मजदूरो और रेलवे की साख का मजाक उड़ा रहे हैं! माना जा सकता है कि कोरोना से बचाना किसी सरकार हाथ में नहीं है मगर दुनिया के सबसे बड़े विशाल रेल नेटवर्क में शुमार भारत के रेल मंत्रालय के हाथ में समय पर ट्रेन चलाना, समय पर अपने गंतव्य स्थान पर पहुंचाना और यात्रियों को सुरक्षित पहुंचाना तो है! मगर कोरोना की मार से हलकान अपने 160 से भी अधिक के शानदार इतिहास को भूलाकर लाॅकडाऊन में चल रही श्रमिक स्पेशल ट्रेन में यात्रा कर रहे मजदूर और उनके परिवार पर कहर बन कर सामने आया है!मुजफ्फरपुर (बिहार) के रेलवे प्लेटफाॅर्म पर एक महिला मृत पड़ी हुई है और उसके एक डेढ़ वर्षिय बच्चा उसके कफन बने आंचल से इस उम्मीद में खेल रहा कि मां अभी उठेगी और उसे कुछ खाने के लिये देगी! वहीं चार वर्षिय दूसरा बेटा गुमशुम सा उसके पास खड़ा है! जब इसका ये ह्रदय को छलनी कर देने वाला वीडियो वायरल हुआ तब निर्लज्ज रेलवे के अधिकारी हरकत में आये, उनका कहना था कि यात्रा करके आई उक्त महिला बीमार थी और मानसिक रुप से बीमार थी! मतलब इनको बिना पोस्टमार्टम के मालूम पढ़ गया महिला पहले से बीमार थी, मगर इसका जबाव नही आया कि मृतक महिला कई घंटो तक प्लेटफाॅर्म क्यों पढ़ी रही! इसी स्टेशन पर रेलयात्रा कर रहे एक मासूम चार वर्ष के बच्चे भूख और प्यास से मौत हो गई जबकि बलिया-बनारस-दानापुर में पांच श्रमिकों के शव मिले! मुंबई से झांसी के लिए 23 मई को चले एक मजदूर का शव 27 मई को ट्रेन के झांसी पहुंचने पर बाथरुम में मिला! इस लाॅकडाऊन में ट्रेंने भी जमकर भटकीं, मुंबई के बसई स्टेशन से गोरखपुर के लिए चली ट्रेन उड़िसा के राउरकिला पहुंच गई! ऐसी एक-दो-तीन या ट्रेन नहीं 40 ट्रेनें भटकीं और जिन्हें 48 घण्टों में अपना सफर तय करना था नौ दिन भटकी-भटका कर पहुंची! कल्पना कीजिये की बड़े-बड़े दावे करने वाला ये रेल मंत्रालय कितना खौफनाक और क्रूर है जो मजदूरों के साथ जानलेवा क्रूर मजाक कर रहा है कि सफर के रास्ते में मजदूर और उनके परिवार के लिये खाना नहीं, पानी नहीं और पढ़ रही इस भंयकर गर्मी में कोई राहत नहीं! अब इन मजदूरों और उनके लिये देवदूत बनकर सामने आई भारत की उच्चतम न्यायालय की फटकार के बाद शायद सरकार और बेशर्म रेल मंत्रालय जाग जाये? माननीय उच्चतम न्यायालय ने हिदायत दी है कि श्रमिक ट्रेनों में सफर करने वाले श्रमिक और उसके परिवार से कोई किराया नहीं लिया जाये, जब तक ट्रेन-बस न मिल जायें, तब तक शेल्टर और खाना दें सरकारें! कितने शर्म और लज्जा का विषय है कि सबका साथ-सबका विकास और सबका विश्वास की बात करने वाली सरकार और सरकारें कितनी अमानविय हो गई हैं कि इस महामारी में अपनों की बैगानी हो गई हैं!